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ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया

झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया

दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं

उल्टी शिकायतें हुईं एहसान तो गया

डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं

सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया

क्या आए राहत आई जो कुंज-ए-मज़ार में

वो वलवला वो शौक़ वो अरमान तो गया

देखा है बुत-कदे में जो ऐ शैख़ कुछ न पूछ

ईमान की तो ये है कि ईमान तो गया

इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो ज़िल्लतें हुईं

लेकिन उसे जता तो दिया जान तो गया

गो नामा-बर से ख़ुश न हुआ पर हज़ार शुक्र

मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया

बज़्म-ए-अदू में सूरत-ए-परवाना दिल मिरा

गो रश्क से जला तिरे क़ुर्बान तो गया

होश ओ हवास ओ ताब ओ तवाँ ‘दाग़’ जा चुके

अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया

हज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के ‘दाग़’

जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं

वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे

तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था

हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे

तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना

शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को

ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का

ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया

तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा

ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा

न जाना कि दुनिया से जाता है कोई

बहुत देर की मेहरबाँ आते आते

दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रात

हाए कम-बख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया

जिस में लाखों बरस की हूरें हों

ऐसी जन्नत को क्या करे कोई

लुत्फ़-ए-मय तुझ से क्या कहूँ ज़ाहिद

हाए कम-बख़्त तू ने पी ही नहीं

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं

जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहाँ मातम भी होता है

हाथ रख कर जो वो पूछे दिल-ए-बेताब का हाल

हो भी आराम तो कह दूँ मुझे आराम नहीं

तुम को चाहा तो ख़ता क्या है बता दो मुझ को

दूसरा कोई तो अपना सा दिखा दो मुझ को

उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से

कभी गोया किसी में थी ही नहीं

हज़रत-ए-दाग़ जहाँ बैठ गए बैठ गए

और होंगे तिरी महफ़िल से उभरने वाले

ज़माने के क्या क्या सितम देखते हैं

हमीं जानते हैं जो हम देखते हैं

उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं

बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं

तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं

तुझे हर बहाने से हम देखते हैं

हमारी तरफ़ अब वो कम देखते हैं

वो नज़रें नहीं जिन को हम देखते हैं

दिल ही तो है न आए क्यूँ दम ही तो है न जाए क्यूँ

हम को ख़ुदा जो सब्र दे तुझ सा हसीं बनाए क्यूँ