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मिलना तिरा अगर नहीं आसाँ तो सहल है

दुश्वार तो यही है कि दुश्वार भी नहीं

रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ

हो रहेगा कुछ न कुछ घबराएँ क्या

ग़ालिब’-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं

रोइए ज़ार ज़ार क्या कीजिए हाए हाए क्यूँ

ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो

हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के

राह में हम मिलें कहाँ

बज़्म में वो बुलाए क्यूँ

तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो

मुझ को भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो

दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं

बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यूँ

जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार

ऐ काश जानता न तिरे रह-गुज़र को मैं

यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं

अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो

ग़ालिब बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे,

ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे।

या रब वो न समझे हैं, न समझेंगे मेरी बात

दे और दिल उनको, जो न दे मुझको ज़बान और

तुझ से तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम

मेरा सलाम कहियो अगर नामा-बर मिले

छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ

हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं

मुझ तक कब उन की बज़्म में आता था दौर-ए-जाम

साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में

अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल

मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले

जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद

फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है

जाते हुए कहते हो क़यामत को मिलेंगे

क्या ख़ूब क़यामत का है गोया कोई दिन और

होगा कोई ऐसा भी कि ‘ग़ालिब’ को न जाने

शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे

कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और

बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं ‘ग़ालिब’

कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,

तुम्हीं कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ़्तगू क्या है !

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन

दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है

वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा

तो फिर ऐ संग-दिल तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यूँ हो

आया है बेकसी-ए-इश्क पे रोना ग़ालिब,

किसके घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद !

बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ‘ग़ालिब’

तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं

क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं

मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ

ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र

काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे

हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही

जिस को हो दीन ओ दिल अज़ीज़ उस की गली में जाए क्यूँ